डा. शैलेन्द्र विक्रम सिंह
उद्यान वैज्ञानिक
फोन नम्बर : 9415750712
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कृषि विज्ञान केन्द्र, रायबरेली
चन्द्रषेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विष्वविद्यालय,
कानपुर-2
भारतवर्ष में सब्जियों की खेती 9.2 मिलियन हेक्टेयर में की जा रही है। सब्जियों का कुल उत्पादन 162 मिलियन टन के आस-पास है तथा सब्जियों की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 17.6 टन प्रति हेक्टेयर (स्त्रोत: भारतीय उद्यानिक डेटावेस 2013) गोभी वर्गीय सब्जियों में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान हैै। पूरे विष्व के गोभी उत्पादन में भारत का 35.6 प्रतिषत हिस्सा है। भारत से गोभी वर्गीय सब्जियों का निर्यात में 47 प्रतिषत मालद्वीप, 29 प्रतिषत सयुक्त राज्य अमीरात तथा 7 प्रतिषत पाकिस्तान को किया जाता है (स्त्रोत: एपेडा)। कुल उद्यानिक उत्पादों में ताजी सब्जियों के निर्यात का हिस्सा 14 प्रतिषत है (स्त्रोत: एपेडा वेबसाइड 2014)। इस क्रम में देखा जाये तो सब्जियों का उत्पादन तथा उनका पोषण में महत्व में काफी असामान्यता है कहते है कि स्वास्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग होता है अतः पोषक तत्वों की कमी भारतीय खानपान में साफ दिखाई देती है।
गोभी वर्गीय एवं सब्जियों में ब्रोकोली या हरा फूल गोभी का प्रथम स्थान है। ब्रोकोली अपने में अत्यधिक पौष्टिक और पोषक तत्वों से परिपूर्ण है। ब्रोकोली का भारतीय खानपान में प्रयोग होना प्रासंगिक है। ब्रोकोली का इस्तेमाल यूरोप एवं अमेरिका में अनेक व्यंजनों को तैयार करने में होता है। यह व्यंजन सब्जियों का सूप पीजा, मैकरोनी, सलाद तथा विभिन्न सब्जियों के व्यंजन तैयार करने में होता है।
ब्रोकोली हरे कलियों और मोटे फूल कलियों का समूह है। ब्रोकोली का फूल सामान्यतः हरे तथा कभी-कभी पीले रंग का होता है प्रजातियों के अनुसार होता है। खाने के लिए ब्रोकोली का शीर्ष भाग एवं कलियों का समूह प्रयोग किया जाता है।
ब्रोकोली में ग्लूकोसीनोलेट नामक सल्फर युक्त पोषक तत्व पाया जाता है। ग्लूकोसीनोलेट के विखण्डन के बाद गोभी में जो विषेष गंध आती है वह इसी तत्व के कारण होती है। यह तत्व कैंसर रोधी औषधीय क्षमता भी रखता है। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी ने यह सुक्षाव दिया है कि ब्रोकोली के नियमित सेवन से कैंसर दूर रहता है। इसके अतिरिक्त मानव खून में प्लाज्मा की मात्रा बढ़ जाती है फेफड़ा कैंसर में लाभकारी है। ब्रोकोली के सेवन से कोलेस्ट्राॅल की कमी आती है।
क्रम. सं. | घटक | मात्रा |
---|---|---|
1 | पानी | 88 प्रतिषत |
2 | प्रोटीन | 3.7 ग्राम |
3 | वसा | 0.29 ग्राम |
4 | कार्बोहाड्रेटस | 5.8 ग्राम |
5 | ऊर्जा | 32 किलो कैलोरी |
6 | पोटैषियम | 380 मिली ग्राम |
7 | कैल्षियम | 100 मिली ग्राम |
8 | विटामिन ए | 2450 अन्तराष्ट्रीय इकाई |
9 | विटामिन सी | 110 मिली ग्राम |
लकी : यह ब्रोकोली की अत्यन्त महत्वपूर्ण किस्म है तैयार होने में 80-90 दिन का समय लगता है इसके हेड का वनज 600-800 ग्राम तक होता है।
फीस्ट : यह किस्म 90 दिन में तैयार हो जाती है। इसके हेड का वजन 1 किलोग्राम के आसपास होता है।
फेस्टीवल यह ब्रोकोली की नई किस्म है। तैयार होने में लगभग 90 दिन का समय लगता है। 600-800 ग्राम वजन की हेड तैयार होते है।
आरिया : हेड या फूल का रंग गहरा हरा होता है। हेड का औसत वजन 1-1.5 किलोग्राम तक होता है। तैयार होने का समय 90-95 दिन है।
भूमि की तैयारी : ब्रोकोली की खेती उन मृदाओं के लिए उपयुक्त है जिसमें कार्बाेनिक पदार्थ की मात्रा अधिक पायी जाती हैं। यह पी.एच. मान 5.5 से 7.5 तक की मृदाओं मंे तैयार की जा सकती है। भूमि तैयार करने के लिए तीन बार गहरी जुताई करनी चाहिए। पौध लगाने हेतु कूढ़ों का निर्माण करना चाहिए।
जलवायु :ब्रोकोली ठंडें मौसम की फसल है। अच्छे हेड 15-20 डिग्री तापमान पर तैयार होते है। यदि ग्रीनहाउस की व्यवस्था हो तो ब्रोकोली खेती पूरे वर्ष की जा सकती है।
बीज दर : 400-500 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
खाद एवं उर्वरक : एक हेक्टेयर खेत में 20-25 टन/हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 130 किलो नाइट्रोजन, 70 किलो फाॅस्फोरस एवं 50 किलो पोटैषियम देना चाहिए। कुल नाइट्रोजन की आधी मात्रा, 65 किलो को तीन बार 30 दिन के अन्तराल पर देना चाहिए।
पौध की तैयारी : बीज का शोधन करना अत्यन्त आवष्यक है। बीज शोधन हेतु 2 ग्र्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में बीज को 20 मिनट तक शोधित करना चाहिए। इसके उपरान्त 0.5 एमएल इन्डाक्लोप्रिड प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर शोधन करना चाहिए।
बीजषया में जब पौधें 5-7 पत्ती के हो जाये तो इनके रोपण से पूर्व जड़ों का शोधन कार्बेन्डाजिम या इन्डाक्लोप्रिड से करना चाहिए। शोधन के उपरान्त ही रोपण करना चाहिए।
बुवाई की विधि 3-4 सप्ताह पुरानी या 5-7 पत्तीदार पौध की रोपाई करनी चाहिए। पौध से पौध की दूरी 45 से 30 सेमी तथा लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी रखनी चाहिए।
ब्रोकोली में विषेष सस्य क्रियाए : नाइट्रोजन, कैल्षियम, बोराॅन तथा मॅलीबीडनम तत्वों का विषेष महत्व होता है। नाइट्रोजन की कमी से बटाने की समस्या उत्पन्न होती है। तथा पौधें का विकास रूक जाता है। पत्तियां छोटे आकार की पौधे पर बनती है। कैल्षियम की कमी से पत्तियों का शीर्ष भाग जला हो जाता है, बोरान की कमी से तनों में छेद हो जाते है। बोरान तथा मॅलीबीडनम के पर्णीय छिड़काव से पौध वृद्धि, हेड आकर एवं उपज में लाभकारी होती है। दो पर्णीय छिड़काव 2 ग्राम/लीटर बोरेक्स का करना चाहिए। अमोनियम मॅलीबिडेड 1 ग्राम/लीटर के दर से छिड़काव करना चाहिए।
उपज एवं तुड़ाई : ब्रोकोली का फूल जब पूरा परिपक्य तथा पीला पड़ जाये तब उसकी तुड़ाई करनी चाहिए। एक हेक्टेयर खेत से 15-20 टन ब्रोकोली प्राप्त की जा सकती है। 10-12 डिग्री सेंटी ग्रेड तापमान पर ब्रोकोली को 15 दिन तक ताजा रखा जा सकता है।
डा. शैलेन्द्र विक्रम सिंह
उद्यान वैज्ञानिक
कृषि विज्ञान केन्द्र, रायबरेली
चन्द्रषेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विष्वविद्यालय
कानपुर-2
भारत के कुल सब्जी उत्पादन मंे पत्ता गोभी का महत्वपूर्ण स्थान है। पत्ता गोभी का कुल सब्जियों में 5.3 प्रतिषत का भाग है (Indian Horticulture Database 2013) भारत का पत्ता गोभी उत्पादन में चीन के बाद दूसरा स्थान है। लाल पत्ता गोभी की खेती सीमित मात्रा में हिमाचल प्रदेष, पंजाब, हरियाणा तथा उत्तराखण्ड में की जा रही है। यह सब्जी अमेरिका और यूरोप में बहुत ही लोकप्रिय है। उत्पादन में यह अन्य गोभी वर्गीय सब्जियों से कहीं आगे है।
लाल पत्ता गोभी सेहत के लिए सौगात है। लाल पत्ता गोभी में प्रचुर मात्रा में एन्थोषानिग पाया जाता है। यह तत्व सेहत के लिए अत्यन्त लाभकारी होता है। एन्थोषाॅनिन तत्व शरीर में बनाने वाले कैंसरकारी फ्री रेडकेल को नियंत्रित करता है। लाल पत्ता गोभी का विषेष गंध दो तरह के रसायनों 2-प्रोपोनील आइसोथायोसाइनेट तथा 3- बोटिनील आइसोथयोसाइनेट केे वजह से होता है। लाल पत्ता गोभी से लाल रंग का उत्पादन किया जाता है जिसका इस्तेमाल पेय पदार्थ, चिविंगम, केन्डीस, सर्बत तथा केक आदि में किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त लाल पत्ता गोभी का इस्तेमाल सब्जी, सलाद की सजावट तथा नोडलस में किया जा रहा है। इन गुणों का महत्व समझते हुए इसकी खेती को पूर्वी एवं मध्य उत्तर प्रदेष के किसानों तक पहुँचाया जा सकता है। कृषि विज्ञान केंन्द्र, रायबरेली द्वारा इसकी खेती 2013 में परीक्षण उपरान्त किसानों तक पहुँचयी गयी है।
क्रम. सं. | प्रमुख घटक | मात्रा |
---|---|---|
1 | पानी | 89 प्रतिषत |
2 | प्रोटीन | 2.1 ग्राम |
3 | वसा | 0.1 ग्राम |
4 | कार्बोहाइड्रेटस | 32 किलो कैलोरी |
5 | पोटेषियम | 270 मिली ग्राम |
6 | स्कोरबिक एसिड | 60 मिली ग्राम |
7 | कैल्षियम | 40 मिली ग्राम |
8 | फाॅस्फोरस | 7 मिली ग्राम |
पूसा सम्बन्ध : यह किस्म गर्म जलवायु सह सकती है संघन रोपण के लिए यह किस्म उपर्युक्त है। कुल उत्पादन लगभग 60 टन प्रति हेक्टेयर होता है। तैयार होने की अवधि 110-120 दिन होती है।
बीजों शीतल 32 : यह किस्म अत्यन्त महत्वपूर्ण है इसकी प्रमुख विषेषता अत्यधिक उत्पादन होता है। कुल उत्पादन लगभग 80-85 टन प्रति हेक्टेयर होता है। तैयार होने की अवधि 110 दिन है।
प्रीमेरो : यह लाल पत्ता गोभी की विष्व प्रसिद्ध किस्म है। उत्तर प्रदेष में खेती हेतु अच्छी किस्म है। कुल उत्पादन लगभग 80 टन प्रति हेक्टेयर होता है। तैयार होने की अवधि 100-110 दिन है।
रेड स्काई : यह किस्म देर से तैयार होने वाली तथा गर्म मौसम के प्रति सहनषील होती है। कुल उत्पादन 80-85 टन प्रति हेक्टेयर होता है। तैयार होने की अवधि 120-125 दिन है।
भूमि की तैयारी : लाल पत्ता गोभी की खेती उन मृदाओं के लिए उपयुक्त है जिसमें कार्बाेनिक पदार्थ की मात्रा अधिक पायी जाती हैं। यह पी.एच. मान 5.5 से 7.5 तक की मृदाओं मंे तैयार की जा सकती है। भूमि तैयार करने के लिए तीन बार गहरी जुताई करनी चाहिए। पौध लगाने हेतु कूढ़ों का निर्माण करना चाहिए।
जलवायु : लाल पत्ता गोभी ठंडें मौसम की फसल है। अच्छे हेड 15-20 डिग्री तापमान पर तैयार होते है। यदि ग्रीनहाउस की व्यवस्था हो तो ब्रोकोली खेती पूरे वर्ष की जा सकती है।
बीज दर : 300-400 ग्राम प्रति हेक्टेयर।
खाद एवं उर्वरक : एक हेक्टेयर खेत में 20-25 टन/हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 120 किलो नाइट्रोजन, 90 किलो फाॅस्फोरस एवं 70 किलो पोटाष देना चाहिए। कुल नाइट्रोजन की आधी मात्रा, 60 किलो को तीन बार 30 दिन के अन्तराल पर देना चाहिए।
पौध की तैयारी : बीज शोधन हेतु 2 ग्र्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में बीज को 15 मिनट तक शोधित करना चाहिए। इसके उपरान्त 0.5 एमएल इन्डाक्लोप्रिड प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर शोधन करना चाहिए।
बीजषया में जब पौधें 5-7 पत्ती के हो जाये तो इनके रोपण से पूर्व जड़ों का शोधन कार्बेन्डाजिम या इन्डाक्लोप्रिड से करना चाहिए। शोधन के उपरान्त ही रोपण करना चाहिए।
बुवाई की विधि : 3-4 सप्ताह पुरानी या 5-7 पत्तीदार पौध की रोपाई करनी चाहिए। पौध से पौध की दूरी 45 से 30 सेमी तथा लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी रखनी चाहिए।
उपज एवं तुड़ाई : फसल की कटाई हेड सक्त होने के बाद तथा रंग कम होने के उपरान्त ही करनी चाहिए। पत्ता गोभी को दूर मार्केट तक भेजना हो तो उसमें ऊपर की पत्तियां को नहीं तोड़ना चाहिए। बीज बुवाई उपरान्त तैयार होने का समय 120-150 दिन तक होता है। औसत उपज 70-80 टन प्रति हेक्टेयर होती है।